न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by:
संदीप तिवारी Updated Sat, 13 Dec 2025 07:33 PM IST
भोपाल में चल रही SIR प्रक्रिया के तहत 39 दिनों में 4.43 लाख मतदाताओं के नाम हटाने की तैयारी है। नो-मैपिंग के बाद कटने वाले नामों की संख्या तेजी से बढ़ी है। चुनाव आयोग ने 18 दिसंबर तक सुधार का मौका दिया है और बीएलओ स्तर पर सत्यापन पर जोर दिया जा रहा है।
राजधानी भोपाल में जारी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) अभियान के दौरान मतदाता सूची में अभूतपूर्व बदलाव सामने आया है। करीब 39 दिनों की पड़ताल के बाद मृत, स्थानांतरित, अनुपस्थित और डबल एंट्री जैसी श्रेणियों में 4 लाख 43 हजार 633 मतदाताओं के नाम अमान्य पाए गए हैं। प्रशासनिक स्तर पर इन्हें सूची से हटाने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा रही है। दिलचस्प बात यह है कि नो-मैपिंग श्रेणी में आने वाले मतदाताओं की संख्या में भी कमी आई है और यह अब 1 लाख 35 हजार 765 रह गई है। हालांकि, नो-मैपिंग के बाद हटाए जाने वाले नामों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है, जिससे राजनीतिक दलों और मतदाताओं की चिंता बढ़ी है
नाम हटाने से पहले बीएलओ स्तर पर सत्यापन जरूरी
नाम कटने के आंकड़ों को लेकर भारत निर्वाचन आयोग के आब्जर्वर और ज्वाइंट सेक्रेटरी ब्रजमोहन मिश्रा ने राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से सीधा संवाद किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि हर नाम हटाने से पहले बीएलओ स्तर पर सत्यापन बेहद जरूरी है, ताकि किसी पात्र मतदाता का अधिकार प्रभावित न हो। आब्जर्वर ने उत्तर विधानसभा क्षेत्र के खानूगांव और दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र के पॉलिटेक्निक मतदान केंद्र पहुंचकर बीएलओ के कामकाज की मौके पर समीक्षा भी की। हालांकि, तय कार्यक्रम के अनुसार अन्य विधानसभा क्षेत्रों का निरीक्षण समयाभाव के कारण नहीं हो सका। समय-सीमा 18 दिसंबर तक बढ़ी
इस बीच चुनाव आयोग ने मतदाताओं को राहत देते हुए गणना पत्रक जमा करने की समय-सीमा 18 दिसंबर तक बढ़ा दी है। अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि इस अवधि में अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर सुधार कार्य पूरा किया जाए। उल्लेखनीय है कि 7 दिसंबर को राजधानी की सात विधानसभा क्षेत्रों में SIR कार्य पूर्ण घोषित किया गया था। उस वक्त 4 लाख 8 हजार 106 नाम हटाने का प्रस्ताव था, लेकिन नो-मैपिंग प्रक्रिया के बाद महज पांच दिनों में 35 हजार 528 नए नाम हटाने की सूची में जुड़ गए। इस तेजी ने मतदाता सूची की शुद्धता के साथ-साथ प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी बहस छेड़ दी है।