दिग्विजय के राज्यसभा सफर पर लगेगा ब्रेक?

दिल्ली दरबार में कमजोर होती पकड़ कर रही बेचैन
भोपाल। प्रदेश की सियासत में ’चाणक्य’ कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के लिए राज्यसभा की डगर इस बार कांटों भरी नजर आ रही है। विधानसभा में बदले हुए समीकरणों और पार्टी के भीतर उठते बदलाव के सुरों ने सिंह की उम्मीदवारी पर सवालिया निशान लगा दिए हैं।
मध्यप्रदेश की सियासत में अप्रैल माह में रिक्त होने वाली राज्यसभा की सीट पर उम्मीदवारी को लेकर हलचल तेज हो गई है। खासकर कांग्रेस में इसे लेकर अभी से माहौल गर्माने लगा है। वर्तमान राज्यसभा सदस्य और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के राज्यसभा पहुंचने की राह भी इस बार आसान नहीं दिख रही। पार्टी के भीतर समीकरण, संख्या बल और अंदरूनी मतभेद उनके लिए बड़ी चुनौती बनकर उभर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, विधानसभा में कांग्रेस की कमजोर स्थिति और विधायकों की संख्या ने पार्टी नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी है। वहीं, दावेदारों की बढ़ती संख्या और क्षेत्रीय संतुलन का सवाल भी दिग्विजय सिंह के नाम पर सहमति बनाने में बाधा बन रहा है। कुछ नेता नए चेहरों को मौका देने की पैरवी कर रहे हैं, जिससे सियासी खींचतान और गहरी हो गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिग्विजय सिंह का अनुभव़ उनके पक्ष में है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में केवल वरिष्ठता के आधार पर रास्ता साफ होना मुश्किल है।  
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिग्विजय सिंह संगठन के आदमी हैं और गांधी परिवार के भरोसेमंद हैं, लेकिन फिलहाल स्थितियां उनके पक्ष में उतनी सहज नहीं हैं जितनी पहले रहा करती  थीं। इस बार उन्हें न केवल विपक्ष से, बल्कि अपनी ही पार्टी के भीतर बदलते मिजाज से भी लड़ना होगा। देखना है कि दिग्विजय सिंह अपनी राजनीतिक कुशलता से एक बार फिर दिल्ली का टिकट कटा पाएंगे, या कांग्रेस किसी नए चेहरे पर दांव लगाएगी? यह फैसला अब पूरी तरह से दिल्ली दरबार (कांग्रेस हाईकमान) के हाथ में है।
संख्या बल का बिगड़ता समीकरण
राज्यसभा चुनाव पूरी तरह गणित का खेल है। प्रदेश विधानसभा में वर्तमान में भाजपा के पास खासा बहुमत है, जबकि कांग्रेस के पास विधायकों का आंकड़ा काफी कम हो चुका है। विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की संख्या मात्र 65 ही है, जबकि एक विधायक बाप पार्टी और भाजपा के 164 विधायक हैं। मौजूदा संख्या बल के हिसाब से कांग्रेस का गणित यहां गड़बढ़ता नजर आ रहा है, यदि भाजपा अपने अतिरिक्त वोटों से खेल करती है, तो कांग्रेस उम्मीदवार के लिए जीतना नामुमकिन हो जाएगा।
नई कांग्रेस और युवा नेतृत्व का दबाव
राहुल गांधी की नई टीम देशभर में जेनरेशन शिफ्ट (पीढ़ी परिवर्तन) पर जोर दे रही है। पार्टी के भीतर एक बड़ा वर्ग अब यह मांग कर रहा है कि राज्यसभा में बुजुर्ग दिग्गजों के बजाय युवा और ऊर्जावान चेहरों को भेजा जाए, जो 2028 के विधानसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार कर सकें।

 

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