चीनी नागरिकों को अब जल्दी मिलेगा भारत का वीजा नियम हुए आसान, कूटनीतिक नरमी के संकेत तेज

भारत और चीन के रिश्तों में आई हालिया नरमी ने दोनों देशों के बीच कई स्तरों पर जमी बर्फ को पिघलाना शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में भारत सरकार ने चीनी प्रोफेशनल्स के लिए बिजनेस वीजा प्रक्रिया को तेज करने का बड़ा फैसला लिया है। यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को फिर से पटरी पर लाने की कोशिशें गति पकड़ रही हैं और 2020 के बाद संबंधों में आई खटास को कम करने की दिशा में कुछ ठोस संकेत सामने आने लगे हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने वीज़ा प्रक्रिया में मौजूद अतिरिक्त प्रशासनिक जांच की एक महत्वपूर्ण लेयर को हटा दिया है, जिससे वीजा मंजूरी का समय अब चार हफ्तों से भी कम रह गया है। दो सरकारी अधिकारियों ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि नई व्यवस्था के बाद चीनी प्रोफेशनल्स को बिजनेस वीज़ा मिलने में पहले की तुलना में काफी आसानी होगी।

चीन ने भारत के इस कदम को “सकारात्मक” करार देते हुए इसका स्वागत किया है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा कि भारत द्वारा लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिए उठाया गया यह फैसला संबंधों में सुधार की दिशा में अहम कदम है। उन्होंने यह भी कहा कि चीन भारत के साथ संवाद और परामर्श जारी रखने को तैयार है ताकि दोनों देशों के रिश्ते वास्तविक प्रगति की दिशा में आगे बढ़ सकें। यह प्रतिक्रिया ऐसे समय आई है जब 2020 में पूर्वी लद्दाख स्थित LAC पर हुए तनाव ने भारत–चीन संबंधों को दशकों पीछे धकेल दिया था। उस तनाव के बाद न सिर्फ सैन्य गतिविधियाँ प्रभावित हुईं, बल्कि व्यापार, तकनीक और वीज़ा संबंधी प्रक्रियाएँ भी काफी सख्त हो गई थीं।

2020 के बाद भारत द्वारा वीज़ा नियमों में की गई सख़्ती से उद्योग जगत पर गहरा असर पड़ा था। ऑब्जर्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग को वीज़ा जांच में हुई देरी और सख़्ती की वजह से लगभग 15 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। भारत में काम कर रहीं कई बड़ी कंपनियों को जरूरी चीनी तकनीशियनों को लाने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। मशीनरी इंस्टालेशन और उत्पादन ठप पड़ने जैसी स्थिति कई बार देखने को मिली। शाओमी जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को भी वीज़ा मंजूरी में काफी लंबा इंतजार करना पड़ा, जिससे उनके एक्सपेंशन प्लान पर प्रतिकूल असर पड़ा। सोलर मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा और कई परियोजनाएँ तकनीकी स्टाफ समय पर न पहुँच पाने की वजह से अटकी रहीं।

ऐसे माहौल में भारत द्वारा वीज़ा नियमों को आसान बनाना उद्योग जगत के लिए राहत की खबर माना जा रहा है। यह कदम संकेत देता है कि दोनों देशों ने 2024 में पेट्रोलिंग अरेंजमेंट को लेकर हुए समझौते के बाद सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर प्रगति की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। इस समझौते के तुरंत बाद देपसांग और डेमचोक जैसे विवादित क्षेत्रों से दोनों देशों की सेनाओं का पीछे हटना संबंधों में आगे बढ़ने की दिशा में बड़ा संकेत माना गया था। दिसंबर 2024 तक अंतिम स्टैंडऑफ़ पॉइंट्स भी खाली कर दिए गए, जिससे यह साफ हुआ कि दोनों देश आपसी तनाव कम करने के लिए इच्छुक हैं। अब बिजनेस वीज़ा प्रक्रिया में ढील उसी सकारात्मक माहौल की अगली कड़ी के रूप में देखी जा रही है।

विशेषज्ञों का मानना है कि वीज़ा प्रक्रिया को सुगम बनाने का यह फैसला आर्थिक सहयोग को नई गति दे सकता है। भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और अपने ‘मेक इन इंडिया’ व ‘सेमीकंडक्टर मिशन’ जैसे कार्यक्रमों के लिए वैश्विक सहयोग पर निर्भर है। चीनी कंपनियाँ लंबे समय से भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स, मोबाइल और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में खासकर सुरक्षा चिंताओं और सीमा तनाव के कारण इन सहयोगों में रुकावट आई। अब नई वीज़ा नीति के कारण तकनीकी सहयोग के रास्ते फिर खुलने की उम्मीद जताई जा रही है।

भारत की ओर से यह नरमी ऐसे समय सामने आई है जब इस साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सात साल बाद चीन का दौरा किया था। यह यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण रही, क्योंकि उनकी मुलाकात राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई। इस मुलाकात के तुरंत बाद दोनों देशों ने वाणिज्य, तकनीक और यात्रा संबंधी कुछ पाबंदियों में ढील देने की दिशा में कदम उठाए। इसी से जुड़े निर्णयों में एक प्रमुख फैसला भारत–चीन के बीच 2020 के बाद पहली बार सीधी उड़ानों को फिर से शुरू करना था। इस निर्णय ने व्यापारिक और व्यावसायिक गतिविधियों में नई ऊर्जा भरने का काम किया।

रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, वीज़ा नियमों में ढील का यह ताज़ा फैसला एक उच्च स्तरीय कमेटी की सिफारिशों पर आधारित है, जिसकी अध्यक्षता पूर्व कैबिनेट सचिव राजीव गौबा कर रहे हैं। यह कमेटी पिछले कुछ वर्षों में विदेशी निवेश को प्रभावित करने वाले नियमों की भी व्यापक समीक्षा कर रही है। चीन सहित कई देशों के निवेशकों ने भारत में निवेश करने में रुचि दिखाई है, लेकिन जटिल प्रक्रियाओं और सख्त जांचों के कारण कई परियोजनाएँ आगे नहीं बढ़ पा रही थीं। कमेटी की इस रिपोर्ट का उद्देश्‍य भारत को विदेशी निवेश के लिए और अधिक आकर्षक बनाना है तथा आर्थिक सहयोग को नई दिशा देना है।

लेकिन यह भी सच है कि भारत–चीन संबंध अभी भी संवेदनशील मोड़ पर हैं। सीमा विवाद पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है और सुरक्षा चिंताएँ भी अपनी जगह कायम हैं। हालांकि, दोनों देशों ने हालिया संवादों में यह स्पष्ट संकेत दिया है कि वे बातचीत और सहयोग के माध्यम से संबंधों को सामान्य करने के इच्छुक हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक सहयोग बढ़ने से राजनीतिक और रणनीतिक स्तर पर भी तनाव कम हो सकता है, क्योंकि दोनों देशों के बीच व्यापारिक साझेदारी पहले से ही व्यापक है। 2023–24 में भारत–चीन व्यापार 100 अरब डॉलर से अधिक था, बावजूद इसके कि राजनीतिक संबंध तनावपूर्ण थे।

भारत द्वारा वीज़ा नियमों में ढील ऐसे समय दी गई है जब वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता बढ़ रही है और सप्लाई चेन को मजबूत बनाने की आवश्यकता तेजी से महसूस की जा रही है। इलेक्ट्रॉनिक्स, मैन्युफैक्चरिंग, अक्षय ऊर्जा और सोलर सेक्टर में भारत अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए विदेशी विशेषज्ञता का उपयोग करता रहा है। चीनी तकनीशियन इन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए वीज़ा प्रक्रिया में तेजी से न सिर्फ उद्योगों को लाभ मिलेगा, बल्कि भारत की उत्पादन क्षमता भी बढ़ेगी और नई परियोजनाओं को गति मिलेगी।

कुल मिलाकर भारत का यह कदम कूटनीतिक और आर्थिक—दोनों नजरिए से अहम माना जा रहा है। यह संकेत देता है कि नई दिल्ली सीमा तनाव और राजनीतिक मतभेदों के बावजूद व्यवहारिक सहयोग को प्राथमिकता देना चाहती है। वहीं, चीन की ओर से भी सकारात्मक प्रतिक्रिया यह जाहिर करती है कि दोनों देश भविष्य में संवाद और सहयोग की राह पर आगे बढ़ने को तैयार हैं। भारत द्वारा वीज़ा नियम आसान करने का फैसला केवल एक प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि एशिया की दो बड़ी शक्तियों के बीच फिर से बढ़ती समझ, सुधारते रिश्तों और स्थिर होते आर्थिक हितों का संकेत है, जो आने वाले महीनों में और भी स्पष्ट हो सकता 


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